Dwitiya Sopan Log Book

नवीनतम पासपोर्ट
साइज़ फोटोग्राफ
(स्काउट गणवेश में )
1राज्य                  
2मंडल                   
3जिले का नाम 
4स्काउट का नाम 
5पिता का नाम 
6माता का नाम 
7जन्म-तिथि 
8विद्यालय का नाम 
9यूनिट का नाम 
10घर का पता 
11संपर्क नंबर / मोबाइल नंबर 
12यूनिट को जॉइन करने की तिथि 
13अलंकरण तिथि 
14प्रवेश की तिथि 
15प्रथम सोपान की तिथि 
16प्रमाण-पत्र नं. (प्रथम सोपान) 
17स्काउट के हस्ताक्षर 
18स्काउट मास्टर के हस्ताक्षर 

भारत स्काउट्स और गाइड्स

लॉग बुक (द्वितीय सोपान)

क्र॰ सं॰विषय
1पायनियरिंग (Pioneering)
2आग (Fire)
3खाना पकाना (Cooking)
4कम्पास तथा मैप (Compass and Map)
5प्राथमिक उपचार (First Aid)
6अनुमान लगाना (Estimation)
7बाहरी गतिविधियां (Out of Doors)
8सेवा (Service)
9बोध प्रशिक्षण(Sense Training)
10प्रवीणता बैज (Proficiency Badges)
11अनुशासन(Discipline)
12संवाद (Communication)
13देशभक्ति (Patriotism)

1. पायनियरिंग (Pioneering):

a) निम्नलिखित गांठों का प्रदर्शन करना:

i. टिंबर हिच (Timber Hitch):

इस गांठ को लट्ठा फांस गांठ भी कहते हैं। यह गांठ बेलनाकर वस्तु को बांधने या फांसने के काम आती है।

टिंबर हिच(लट्ठा फांस) गांठ लगाने की विधि:
• रस्सी के एक सिरे को लकड़ी के ऊपर लपेटो।
• अब इस सिरे को पकड़कर, खड़ी रस्सी के चारों ओर लपेटो।
• अब इस सिरे को लकड़ी पर लपेटी हुई रस्सी के चारों तरफ दो-तीन बार लपेटो।
• अब हाथ में पकड़ी हुई खड़ी रस्सी को लकड़ी के 2-3 हाफ हिच गांठ लगा दो और रस्सी के खड़े सिरे को मजबूती से खींच लीजिए।

टिंबर हिच गांठ का उपयोग: यह गांठ बेलनाकार वस्तुओं को आसानी से बांधने व एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए काम आती है। इसको बांधना व खोलना आसान है।

ii. रोलिंग हिच (Rolling Hitch):

किसी वस्तु को बांधने के लिए यह एक बहुत ही आसान तथा सुरक्षित विधि है। यह गांठ बिना खिसके मजबूती के साथ किसी बेलनाकार वस्तु को खड़ी लाइन की दिशा में खींचने के काम आती है। यह गांठ खूंटा गांठ (Clove Hitch) की तुलना में अधिक सुरक्षित होती है।

रोलिंग हिच लगाने की विधि:
• रस्सी के एक सिरे को किसी वस्तु के चारों तरफ लपेटिए और दूसरे हाथ में पकड़ी रस्सी को क्रॉस करके उसके ऊपर से लेकर आइए।
• अब रस्सी को तीसरी बार वस्तु के ऊपर से लपेटो और दूसरे हाथ में पकड़ी रस्सी को क्रॉस नहीं करें।
• अंतिम लपेटे के नीचे से रस्सी के मुक्त सिरे को लेकर जाइए और इसको कसकर खींच दीजिए।

रोलिंग हिच गांठ के उपयोग:
किसी बेलनाकर वस्तु को मजबूती से बांधकर लाइन की दिशा में खींचने के लिए इस गांठ उपयोग किया जाता है । जैसे किसी अग्निशामक यंत्र को निचली मंजिल से ऊपर की मंजिल तक खींचने के लिए ।

iii. मार्लिन स्पाइक(Marlin Spike) या लीवर हिच:

मार्लिन स्पाइक एक अस्थाई गांठ है, जिसका उपयोग रस्सी को लकड़ी से बांधने तथा हैंडल बनाने के लिए किया जाता है। हाथों से रस्सी पकड़कर इसको जितना खींचा जाता है यह गांठ उतना ही तनाव देती है।

लीवर हिच गांठ लगाने की विधि:
• एक पाश (loop) बनाइए। इसे दायीं ओर विस्थापित करें।
• इसे लंबवत रेखा के पार (Cross) करें।
• मध्य रस्सी को बायीं ओर खींचे या पास करें।
• बने हुये(पाश) के बीच में एक बेलनाकार वस्तु रखें।
• दोनों सिरों को कसकर खींच दीजिए। लीवर हिच गांठ तैयार है ।

लीवर हिच गांठ का उपयोग: इस गांठ की सहायता से बांस के डंडे या लकड़ियों को फंसाकर अस्थाई सीढ़ी बनाई जा सकती है।

iv. आठ की आकृति गांठ (Figure of Eight Knot):

आठ की आकृति गांठ को Flemish Knot के नाम से भी जाना जाता है। आठ की आकृति गांठ एक प्रकार की स्टोपर (Stopper) गांठ है जो चढ़ाई तथा नौकायन में उपयोग की जाती है। यह गांठ एक मजबूत गांठ होती है और खिसकती नहीं है।

आठ की आकृति गांठ लगाने की विधि:
• रस्सी के एक सिरे से एक पाश (loop) बनाएं।
• अब रस्सी के उसी सिरे को नीचे से पाश के अंदर से निकालें।
• रस्सी के दोनों सिरों को खींच लीजिए ।

आठ की आकृति गांठ के उपयोग : यह गांठ बचाव कार्यों में , नौकायन में, चढ़ाई करने आदि में उपयोग की जाती है।

b) लैशिंग तथा उनका उपयोग:

स्क्वायर लैशिंग (Square Lashing):स्क्वायर लैशिंग का उपयोग लट्ठों को एक साथ बांधने के लिए किया जाता है। स्क्वायर लैशिंग विभिन्न प्रकार से बांधी जाती है लेकिन सभी में लट्ठों के चारों ओर घुमाव लगाकर तथा घुमावों के चारों ओर फ्रैप्स लगाए जाते हैं ।





स्क्वायर लैशिंग लगाने की विधि:
• किसी एक लकड़ी के चारों ओर खूंटा गांठ (Clove Hitch) बांधना शुरू करें।
• खूंटा गांठ से ढीले सिरे को रस्सी के चारों ओर ट्विस्ट(Twist) करें तथा दो लकड़ियों के चारों ओर रस्सी को लपेटें।
• घुमावों को लगाते समय रस्सी क्रॉस के पिछले घुमावों के बाहर जाती है तथा दूसरे हिस्से पर मौजूदा लपेटों के अंदर आती है ।
• “अंदर-बाहर” अनुक्रम के बाद लकड़ी के चारों ओर रस्सी लपेटना जारी रखें।
• जब आप मजबूती के अनुसार पर्याप्त घुमाव लगा देते हैं तब दोनों लकड़ियों के बीच रस्सी को क्षैतिज रूप से लगाएं।
• लकड़ियों के बीच गांठ के चारों और रस्सी लपेटें, इसे फ्रेपिंग कहते हैं। जितना संभव हो उतना फ्रेपिंग को कसकर लगाएं तथा एक और घुमाव लगाएं। अंत में खूंटा गांठ (Clove Hitch) लगाकर स्क्वायर लैशिंग को पूर्ण करें।

स्क्वायर लैशिंग के उपयोग:
o यह लैशिंग भार वहन के लिए काम ली जाती है।
o मचान बनाने में उपयोग की जाती है।
o आयताकार फ्रेम बनाने में उपयोग की जाती है।

छोटी कुल्हाड़ी या चाकू के उपयोग:

छोटी कुल्हाड़ी या चाकू का स्काउटिंग में बहुत उपयोग है। कुल्हाड़ी या चाकू जंगल में लकड़ी काटने, कांटेदार झाड़ियों को काटने या हटाने, जंगली जानवरों से सुरक्षा आदि के लिए उपयोग किए जाते हैं । छोटी टहनियों को जरूरत के हिसाब से काटने व छाँटने के लिए चाकू का उपयोग किया जाता है। जंगल में फल काटने व इंधन काटकर इकट्ठा करने में चाकू और कुल्हाड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। किसी लकड़ी को नुकीली बनाने या हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कुल्हाड़ी का उपयोग किया जाता है।



कुल्हाड़ी को उपयोग लेते समय सुरक्षा के नियम:
 कुल्हाड़ी का हत्था मजबूत लकड़ी का होना चाहिए ।
 कुल्हाड़ी का हत्था कुल्हाड़ी में मजबूती के साथ लगा होना चाहिए व ढीला नहीं होना चाहिए।
 हत्थे की लंबाई व मोटाई पर्याप्त हो।
 कुल्हाड़ी को काम लेते वक्त अपने शरीर से पर्याप्त दूरी पर रखना चाहिए।
 कुल्हाड़ी की धार पैनी होनी चाहिए व कुल्हाड़ी ज्यादा वजनी नहीं होनी चाहिए।
 समय-समय पर कुल्हाड़ी को मजबूत पत्थर पर रगड़ कर धारदार बनाकर रखना चाहिए।

d) छुरे या छोटे चाकू का उपयोग:

छुरा एक धारदार हथियार होता है। स्काउटिंग में इसका उपयोग जंगल में जंगली जानवरों से सुरक्षा, झाड़ियों को हटाकर रास्ता बनाने में भी किया जाता है । तम्बू लगाने के लिए इससे छोटे-छोटे गड्ढे भी बनाए जा सकते हैं।
छुरे को उपयोग लेते समय सुरक्षा नियम:

 छुरे के आगे के भाग या धारदार भाग को सीधे हाथों से नहीं छूना चाहिए।
 छुरे को सिर्फ जंगल में सुरक्षा के लिए उपयोग लेना चाहिए।
 इसे समय-समय पर पत्थर से रगड़ कर धारदार बनाए रखना चाहिए।

e) पेंचकस (Screw Driver), सरौता(Pliers) तथा हथौड़े(Hammer) का उपयोग:

पेंचकस (Screw Driver): घर में बिजली का काम करते वक्त पेंच (Screw) को खोलने व कसने में पेंचकस का उपयोग किया जाता है। घर में बिजली का कार्य, घरेलू वस्तुओं को ठीक करने व उनके हिस्सों को कसने के लिए, टीवी, रेडियो या अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान के लिए पेंचकस का उपयोग किया जाता है। पेंचकस हमें बिजली के झटकों से भी बचाता है।




सरौता(Pliers):किसी नट बोल्ट को मजबूती से कसने के लिए सरौता का उपयोग किया जाता है। दो बिजली के तारोंं को मजबूती से जोड़ने के लिए सरौता का उपयोग किया जाता है। सरौता से तारोंं को छीला जा सकता है व काटा जा सकता है। यह हमें बिजली के झटकों से भी बचाता है।




हथौड़ा (Hammer): किसी चीज को मजबूती से जमीन में गाड़ने के लिए हथौड़े का प्रयोग किया जाता है। जैसे तंबू लगाने के लिए लकड़ी को जमीन में गाड़ना, किसी वस्तु को कूटकर उसकी आकृति में परिवर्तन करने के लिए, लोहे की वस्तुओं को कूटकर नुकीली बनाने के लिए।



2. आग (Fire) :

a) कैंपिंग या Outing के दौरान विभिन्न प्रकार की आग:

कैंपिंग या आउटिंग के दौरान आग का बहुत महत्व है। आग खाना पकाने, चाय बनाने, पानी गर्म करने, जंगली जानवरों से रक्षा करने तथा कैंप फायर में उपयोग की जाती है। स्काउटिंग में कैंपिंग/आउटिंग में हमें अलग-अलग मौसम में अलग-अलग स्थानों के लिए विभिन्न प्रकार की आग विधियों का उपयोग करना होता है। कैंपिंग या Outing के दौरान विभिन्न प्रकार की आग निम्नलिखित है :

i. Teepee Fire : सूखा घास, पत्तियाँ और लकड़ियाँ इकट्ठा करें । बड़ी और मोटी लकड़ियों को ऊपर से एक-दूसरे के सिरों को मिलाते हुये पिरामिड की तरह खड़ा कर दीजिये। अब घास और पत्तियों को लकड़ियों के नीचे धरातल पर रखें। अब घास को आग लगा दीजिए ।


ii. Three Point Fireplace : यह एक बर्तन या पैन (Pan) के लिए सबसे सरल तरीका है। आग के चारों ओर तीन चट्टाने या तीन धातु के खूँटे लगा दें तथा उस पर बर्तन रख दें।


iii. रॉक Fireplace: इस तरह की आग में सूखी और समतल चट्टानों का उपयोग किया जाता है। इन चट्टानों को दो पंक्तियों में आवश्यक जगह छोड़ कर एक-दूसरे के समानांतर रखा जाता है ।


iv. Hunter’s Fireplace: इस प्रकार की आग में लट्ठों का उपयोग किया जाता है। दो लट्ठों को बर्तन के आकार के अनुसार सही ढंग से रखें। चूंकि आग धीरे-धीरे लट्ठों के अंदर के भाग को जला देती है, तो समय-समय पर उनको बदलते रहना चाहिए।


v. Trench Fireplace: यह आग जमीन में खाई खोदकर जलाई जाती है। खुले मैदान में एक हवादार दिन में यह अधिक सुरक्षित है । फावड़े से खाई को चिन्हित करें। इसे बर्तनों के अनुसार पर्याप्त चौड़ाई तक खोदें। खाई से मिट्टी निकालें। अच्छी आग के लिए खाई के आगे के भाग को चौड़ा करें। काम पूर्ण होने पर तथा जगह ठंडी होने पर राख को हटा दें।


vi. Bean Hole : जमीन में एक गोलाकार गड्ढा खोदें। उसका आकार बर्तन के आकार के अनुसार होना चाहिए। गड्ढे में आग जला दें तथा इंधन को सॉफ्ट होने तक जलाएं। अब गरम कोयलों का उपयोग करके खाना पकाएं।

vii. Log Cabin Fire : स्काउट्स के पूरे शिविर के लिए यह आदर्श फायर है। इसमें लट्ठों की परत लगाकर एक के ऊपर एक रखा जाता है। आधार या धरातल पर सबसे ज्यादा चौड़ाई के लट्ठे रखे जाते हैं तथा सबसे ऊपर सबसे छोटे लट्ठे रखे जाते हैं । सबसे ऊपरी भाग को पहले आग लगा दी जाती है। जैसे-जैसे कैंप फायर आगे बढ़ता है, आग नीचे के लट्ठों तक आती जाती है।


viii. Reflector Fire : यह आग चट्टानों या लट्ठों के सामने लगाई जाती है। यह सर्दियों की रात में आराम प्रदान करती है। यह रिफ्लैक्टर चूल्हा खाना पकाने में भी उपयोगी है।


ix. Star Fire : इस फायर में 4-5 लट्ठों को एक -दूसरे के आमने-सामने रख दिया जाता है। जैसे साइकिल के पहिए में ताड़ियाँ । लकड़ियों के जलने वाले हिस्से को थोड़ा ऊपर रखा जाता है। जैसे-जैसे लकड़ी जलती है इनको धीरे-धीरे आगे खिसकाया जाता है।


x. Vigil Fire: दो लकड़ियों को समानांतर पर्याप्त दूरी पर रखें। उनके ऊपर 90 डिग्री के कोण पर क्षैतिज अवस्था में दो लट्ठे रखें। उन दो लट्ठों पर एक और लट्ठ रखें। अब आग जलाएं। आग दो-तीन घंटे जलेगी।


b) दो या दो से कम दियासलाई (तिल्लियों) से आग जलाना:

जंगल या outing के दौरान हमें अपने संसाधनों को कम से कम खर्च करते हुए अधिक से अधिक काम करना होता है। माचिस की तिल्लियों का कम से कम इस्तेमाल करके आग जलाने के लिए सबसे पहले हमें सूखा और मोटा ईंधन एक जगह इकट्ठा करना होगा। अब हमें आसपास से सूखा घास व पत्ते, जो जल्दी आग पकड़ लेते हैं उनको इकट्ठा करना होगा। सबसे नीचे सूखी घास व सूखे पत्ते रखेंगे और अच्छे ढंग से उसके ऊपर थोड़ा मोटा ईंधन रखेंगे तथा सबसे मोटा ईंधन सबसे ऊपर रखेंगे जो देर से आग पकड़ता हो। अब हम हवा की दिशा को ढक कर बैठेंगे और माचिस की तिल्ली को सूखी घास के नजदीक रखेंगे। हवा का वेग कम होते ही माचिस की दियासलाई को जलाएंगे और एक हाथ से हवा से बचाकर तुरंत सूखी घास में दियासलाई लगा देंगे और थोड़े समय के लिए दियासलाई को स्थिर रखेंगे। इससे एक या दो दियासलाई के उपयोग से ही आग जल जाएगी।

3. खाना पकाना (Cooking):

a) केरोसिन प्रेशर चूल्हे तथा गैस चूल्हे की कार्यप्रणाली तथा उनका रख रखाव:

i. केरोसिन प्रेशर चूल्हा ( केरोसिन प्रेशर स्टोव): यह स्टोव खाना पकाने के काम आता है। इसमें मिट्टी के तेल को इंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। इससे लगी टंकी में मिट्टी का तेल भरा जाता है तथा प्रेशर स्टिक का उपयोग करके प्रेशर बनाया जाता है, जिससे पतले छिद्र से केरोसिन तेल बाहर आता है और माचिस की तिल्ली से इसे जलाया जाता है। प्रेशर स्टिक का उपयोग करके प्रेशर बढ़ाया जाता है जिससे यह तेज आग जलाने का काम करता है।


ii. गैस स्टोव : इस प्रकार के स्टोव में एलपीजी गैस ईंधन के रूप में काम ली जाती है। इस स्टोव में गैस की टंकी में लिक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG) द्रव के रूप में भरी होती है। यह प्रेशर के साथ चूल्हे से गैस के रूप में बाहर आती है जिसको माचिस की तिल्ली की सहायता से जलाया जाता है और खाना पकाया जाता है।





रखरखाव :
स्टोव को समय-समय से साफ करना चाहिए और देखभाल करनी चाहिए। इनको चेक करना चाहिए कि इनमें कोई लीकेज तो नहीं है। लीकेज को तुरंत ठीक करना चाहिए।

b) खुले में खाना पकाना:

स्काउटिंग में कैंप तथा आउटिंग में खुले में खाना पकाने की जरूरत पड़ती है। यहां पर हम निम्नलिखित खाना बनाने के बारे में सीखेंगे।
i. खुले में चावल पकाना
ii. खुले में दाल पकाना
iii. चाय बनाना

i. खुले में चावल पकाना: सबसे पहले हम खुले में उपलब्ध संसाधनों के अनुसार एक चूल्हा बनाएंगे। इस चूल्हे को बनाने के लिए हम चट्टानों या लट्ठों का उपयोग करेंगे। यहां हम चार लोगों के लिए चावल बना रहे हैं । चावल को अच्छे से धो कर उसको 10-15 मिनट तक पानी में भिगो कर रख देंगे । अब हम चूल्हे में आग जलाएंगे और उस पर बर्तन रखेंगे। बर्तन में चावल डाल देंगे और चावल के अनुपात का दुगुना पानी डाल देंगे। अब चावल को किसी बर्तन से आधा ढक देंगे। 15 से 20 मिनट चूल्हे में मध्यम आंच पर इन चावलों को पकाएंगे। अब चावल में पानी भाप बनकर उड़ जाएगा और चावल पक कर तैयार हो जाएंगे। इस तरह हम खुले में चावल पका सकते हैं।

ii. खुले में दाल बनाना: दाल को 10-15 मिनट पानी में भिगोएंगे। चूल्हे में आग जलाएंगे। बर्तन को चूल्हे पर रख कर बर्तन में वनस्पति तेल या घी डालेंगे। तेल गर्म होने पर उसमें जीरा डालेंगे। जीरा पकने के बाद कटे हुए प्याज, लहसुन आदि डालेंगे । प्याज, लहसुन भुनने के बाद पिसी हुई मिर्च व हल्दी को थोड़े पानी में घोलकर डालेंगे। मसालों के थोड़ा भुनने के बाद भीगी हुई दाल बर्तन में डालेंगे। अब 20 से 25 मिनट दाल को ढककर पकाएंगे। स्वादानुसार नमक डालेंगे।

iii. चाय बनाना: सबसे पहले एक बर्तन में थोड़ा सा पानी रखकर चूल्हे पर रखेंगे। उसमें थोड़ी चाय पत्ती व चीनी डालेंगे। अब इसको 5 मिनट तक गर्म करेंगे। अब इसमें दूध डालेंगे। तीन से चार उबाल आने तक चाय को पकाएंगे। चाय बन कर तैयार हो गई।

c) गैस रिसाव होने पर उससे बचाव के तरीके:

 गैस सिलेण्डर लेते समय ही लीकेज की जाँच अवश्य करें।
 गैस की स्मेल आए तो सबसे पहले खुद को शांत रखें और पैनिक न हों।
 किचन या घर में मौजूद इलेक्ट्रिक स्विच व उपकरणों को ऑन न करें।
 किचन व घर की खिड़कियां व दरवाजे खोल दें।
 रेग्युलेटर को चैक करें यदि वह ऑन है तो उसे तुरंत बंद कर दें।
 रेग्युलेटर बंद करने पर भी गैस लीक हो रही हो तो उसे निकालकर सेफ्टी कैप लगा दें।
 नॉब को भी अच्छे से चैक करें।
 गैस को बाहर निकालने के लिए फैन आदि न चलाएं।
 घर में यदि कोई दीपक या अगरबत्ती जल रही हो तो उसे बुझा दें।
 गैस के कारण आंखों में जलन हो तो उसे मसलने की जगह ठंडे पानी से धोएँ।
 दो साल में एक बार वितरक से जांच कराना जरूरी है।
 गैस के चुल्हे का प्रयोग नहीं करते समय और सोने से पहले रात के समय रेगुलेटर को बंद कर दें।

4. कम्पास तथा मैप (Compass & Map):

a) कम्पास के 16 पॉइंट्स की जानकारी :

दिशा सूचक यंत्र (Compass) दिशा का ज्ञान कराता है। यह यंत्र महासागरों, मरुस्थल, जंगलों तथा आसमान में हवाई जहाजों में दिशा बताने के काम आता है। कम्पास में चुंबक लगी होती है जो दिशाओं का सही ज्ञान कराती है। एक कंपास में मुख्यतः 16 बिंदु होते हैं, जिनमें चार मुख्य दिशाएं (Cardinal Directions) होती हैं, जिनका नाम निम्नलिखित है:
 पूर्व
 पश्चिम
 उत्तर
 दक्षिण




इन कार्डिनल बिंदुओं(Points)के बीच चार हाफ कार्डिनल बिंदु (Half Cardinal Points) भी होते हैं, जो निम्नलिखित हैं: उत्तर-पूरब (North-East), दक्षिण-पूर्व(South-East), दक्षिण-पश्चिम(South-West) उत्तर-पश्चिम(North-West).
कार्डिनल बिंदुओं और हाफ कार्डिनल बिंदुओं के बीच के 8 बिंदुओं को फाल्स पॉइंट (False Point) कहा जाता है, जो निम्नलिखित हैं:
 उत्तर-उत्तर-पूर्व (NNE)
 पूर्व-उत्तर-पूर्व (ENE)
 पूर्व-दक्षिण-पूर्व (ESE)
 दक्षिण-दक्षिण-पूर्व (SSE)
 दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम (SSW)
 पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम (WSW)
 पश्चिम-उत्तर-पश्चिम (WNW)
 उत्तर-उत्तर-पश्चिम (NNW)

b) कम से कम दो नक्षत्रों (Constellations) द्वारा उत्तर दिशा का पता लगाना:

i. दिन के समय
ii. रात के समय

i. दिन के समय:
सूर्य की सहायता से : सूर्य से भी हम उत्तर दिशा मालूम कर सकते हैं। सूर्य हमेशा पूर्व में निकलता है तथा पश्चिम में डूबता है । सुबह सूर्य निकलते वक्त अगर हम सूर्य के सामने मुंह करके खड़े हो जाएँ तो हमारे ठीक सामने पूर्व दिशा होगी, पीछे की तरफ पश्चिम दिशा, बाएँ तरफ उत्तर दिशा तथा दायीं और दक्षिण दिशा होगी ।
इस प्रकार संध्याकाल में छुपते हुए सूर्य के तरफ मुंह करके खड़े हो जाये तो मुख के सामने पश्चिम , पीछे की तरफ पूर्व, दाहिने हाथ की तरफ उत्तर तथा बाएँ हाथ की तरफ दक्षिण दिशा होगी।
दोपहर 12 बजे के समय सूरज की छाया उत्तर दिशा की ओर होती है उस समय सामने उत्तर, पीछे दक्षिण, बाएँ हाथ की तरफ पश्चिम और दाहिने हाथ की ओर पूर्व दिशा होगी । इस प्रकार सूर्य से हम दिन में तीन बार दिशा ज्ञात कर सकते हैं।

ii. रात के समय:
ध्रुवतारा से: रात के समय ध्रुवतारा से उत्तर दिशा ज्ञात कर सकते है । ध्रुवतारा हमेशा उत्तर दिशा में निकलता है । ये अन्य तारों के अपेक्षा बहुत ज्यादा चमकीला होता है और सिर्फ 2.5 डिग्री के अंदर घूमता रहता है इसलिए ये अपने स्थान पर स्थिर लगता है। इसके द्वारा ज्ञात उत्तर को भौगोलिक उत्तर कहते है । लेकिन इसकी मदद से हम केवल उत्तर गोलार्ध में ही दिशा ज्ञात कर सकते है क्योंकि यह दक्षिण गोलार्ध में दिखाई नहीं देता है ।
सप्तर्षि तारा: रात के समय आकाश में लगभग उत्तर दिशा में तारों का एक समूह दिखाई देता है । जिसे हम सप्तर्षि कहते है । इस समूह में सात तारे होते हैं। सप्तर्षि जब ध्रुव तारे के चारों ओर चक्कर लगाते हैं तो उस समय उसके पहले दो तारों का रुख हमेशा ध्रुवतारे की ओर ही रहता है ।
सप्तर्षि मंडल: सप्तर्षि मंडल के पहले दो तारों की सहायता से हम ध्रुवतारा की पहचान कर सकते हैं । ध्रुवतारा को ज्ञात करने के लिए सप्तर्षि के पहले वाले दो तारों को मिलते हुए इनके बीच के फासले के 4.5 गुना लम्बी एक कल्पित रेखा खींचे तो वह रेखा एक जैसे उज्जवलमन तारे को काटते हुए गुजरेगी जो अक्सर दुसरे तारों की अपेक्षा ज्यादा चमकीला दिखाई देता है जो ध्रुवतारा होता है ।
कोस्सोपिया(Cossopian) : जब सप्तऋषि आकाश में दिखाई नहीं देता है तो उस अवस्था में हमें कोस्सोपिया तारों के समूह से उत्तर दिशा ज्ञात करते है। कोस्सोपिया ग्रुप में पांच तारे होते हैं। इनकी बनावट अंग्रेजी के अक्षर डब्ल्यू (W) के जैसी होती है । कोस्सोपिया से उत्तर पता करने के लिए इसके डब्ल्यू आकार में एक कोण छोटा तथा एक बड़ा कोण होता है। बड़े एंगल के बीचों-बीच अगर एक काल्पनिक रेखा खीचकर आकाश में नीचे की तरफ देखें तो एक चमकीला तारा दिखाई देगा तो ध्रुवतारा है और ध्रुवतारा हमेशा उत्तर दिशा में दिखाई देता है। इस प्रकार से हम उत्तर दिशा का पता लगा सकते है।
दक्षिण खटोला: उत्तरी गोलार्द्ध में हम ध्रुवतारा की मदद से उत्तर दिशा ज्ञात करते हैं। लेकिन दक्षिणी गोलार्द्ध में ध्रुवतारा दिखाई नहीं देता है, इसलिए दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण खटोला की मदद से दक्षिण दिशा ज्ञात करते हैं । दक्षिण खटोला एक पतंगे के सामान चार तारोंं का समूह है जो हमेशा लगभग दक्षिण में दिखाई देता है। इसलिए उस की मदद से हम दक्षिण दिशा ज्ञात करते है और बाद में बाकी सब दिशाएँ ज्ञात करते हैं ।

c) कम्पास का उपयोग करके अपनी स्थिति से विभिन्न स्थानों की स्थिति का पता लगाना:

बियरिंग(Bearing) वह दिशा है जिसमें आप उत्तर दिशा के सापेक्ष में अपनी स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना चाहते हैं। बियरिंग कंपास के 360 बिंदुओं में से कोई भी एक बिंदु हो सकता है। आप एक नक्शे पर या किसी क्षेत्र में बियरिंग का पता कर सकते हैं। कंपास का उपयोग करके अपनी स्थिति से विभिन्न स्थानों की स्थिति का पता हम दो तरीकों से लगा सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं :




i. अगर आप अपने गंतव्य को देख सकते हैं
ii. यदि आप अपने गंतव्य को नहीं देख सकते हो

i. अगर आप अपने गंतव्य को देख सकते हैं:
कम्पास को अपने हाथ में सीधा पकड़े और उसकी Direction of Travel Arrow को गंतव्य की दिशा में कीजिए । चुंबकीय सुई(Magnetic Needle) के लाल सिरे के साथ उत्तरी सुई(Orienting Arrow) के नुकीले सिरे को मिलान(Align) करने के लिए कंपास को घुमाएं। इंडेक्स लाइन पर बियरिंग को पढ़ें। जैसे 136 डिग्री । जब आप लंबी पैदल यात्रा शुरू करते हैं तो आप कम्पास फेरबदल करते हैं। कंपास को अपने हाथ में सीधा रखें और सुनिश्चित करें कि बियरिंग 136 डिग्री तक पढ़े और अपने शरीर को तब तक हिलाएं या मूव कराएं जब तक कि उत्तरी सुई(Orienting Arrow) और उत्तरी कंपास की लाइन(Orienting line) एक दूसरे से मेल ना खाएं। दिशा की यात्रा सुई (Direction of Travel Arrow) इंगित करेगी कि आपको किस दिशा में जाना है।

ii. यदि आप अपने गंतव्य को नहीं देख सकते हो:
कम्पास के रनिंग सिरे को वांछित यात्रा की दिशा (Direction of Travel Arrow) में करके कम्पास को मानचित्र पर रखें। अब कम्पास की उत्तर-दक्षिण दिशा को मानचित्र की उत्तर-दक्षिण दिशा की लाइन से मिलान(align) करने के लिए कम्पास को घुमाएं। जैसे बियरिंग 92 डिग्री। अब यात्रा शुरू करने के बिंदु पर खड़े हो जाओ। इंडेक्स लाइन पर बियरिंग को 92 डिग्री पर सेट करें। कम्पास को सही लेवल में अपने सामने रखें और कम्पास को हिलाएँ (Shuffle)। अब कंपास की सुई आपके गंतव्य को सही से इंगित कर रही है।

d) मानचित्र की शब्दावली व जानकारी :

मानचित्र पैमाना (Scale): मानचित्र पर दूरी और असल में पृथ्वी पर दूरी के अनुपात को मानचित्र पैमाना(Scale)कहा जाता है। जैसे मानचित्र पैमाना(Scale) को निम्न प्रकार से लिखा जाता है: 1:50000
इसका मतलब है कि मानचित्र पर 1 सेंटीमीटर, पृथ्वी पर 50000 सेंटीमीटर (500 मीटर) के बराबर है।

दिशाएं (Directions): मानचित्र पर दिशा का पता लगाने का सबसे सरल तरीका है कि जब आप मानचित्र को अपने सामने सीधा रखते हो तो सबसे ऊपर दिशा उत्तर दिशा होती है। उसके दाएं में पूर्व दिशा, नीचे की तरफ दक्षिण दिशा और बाईं तरफ पश्चिम दिशा होती है।



e) रूढ़ि चिन्ह(Conventional Sign):

सर्वे ऑफ़ इंड़िया द्वारा निश्चित किये गए उन निशानों को कन्वेंशनल चिन्ह या रूढि चिन्ह कहते हैं जिनकी मदद से जमीन की कुदरती या बनावट आकृतियों को मानचित्रों पर दिखाया जाता है।

रूढि चिन्ह दो प्रकार के होते हैं :
i. सर्वे चिन्ह (Survey sign) : सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा निश्चित किये हुए होते हैं ।
ii. मिलिट्री निशान (Military symbol) : सेना मुख्यालय द्वारा निश्चित किये जाते हैं। यह गोपनीय रखे जाते हैं । इसके द्वारा सेना संबंधी जानकारियों को दर्शाते हैं।





रूढ़ि चिन्ह बनाने का तरीका: रूढ़ि चिन्ह बनाने के तीन तरीके हैं :

i. आकृतियां बनाकर : आकृतियां बनाने के तीन प्रकार होते है:
• पड़े रूप में : पड़े रुप में रूढ़ि चिन्ह उसी प्रकार बनाये जाते है जिस रूप में वो जमीनी निशान जमीन पर है । जैसे : रेलवे लाइन, नदी, नहर, झील , तालाब , मकान , शहर आदि।

• खड़े रुप में : इस विधि में रूढ़ि चिन्ह उन ज़मीनी निशानों का बनाते है जो निशान सामने दिखाई देते है जैसे मंदिर, चर्च, मकबरा , मस्जिद आदि।

• सामान्य रूप में : साधारण रूप में रूढ़ि चिन्ह ऐसी शक्ल में बनाए जाते हैं जिससे उन ज़मीनी निशानों का भाव प्रकट होता हो। जैसे लड़ाई के मैदान के लिए दो तलवारों का मेल का सिंबल , कटाई, भारी, सुरंग आदि सामान्य विधि के द्वारा दिखाई जाती है ।

ii. आकृतियों के साथ नाम लिखकर: इस विधि में उन ज़मीनी निशानों के निशान बनाये जाते हैं जिनकी बनावट लगभग एक जैसी होती है। इसलिए इसकी आकृति बना कर उसके साथ अंग्रेजी अक्षर कैपिटल लैटर में लिख देते हैं। जैसे : PO (Post office), PS (Police Station), RH (Rest House), DB (Dak Bungalow) आदि।


iii. रंग भर कर : कुछ ज़मीनी निशानों को रंग भर कर भी दिखाया जाता है। रंग का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि रंग उस ज़मीनी निशान का सही भाव प्रकट करे। जैसे : पानी को नील रंग से ,जंगल को हरे रंग से, पहाड़ी वाले भूभाग को भूरे रंग से, हॉस्पिटल के + चिन्ह को लाल रंग से आदि ।

f) कंटूर रेखाएं तथा ग्रिड Reference :

कंटूर रेखा : सर्वे मैपों पर भूरे रंग की खींची हुई उन रेखाओ को कंटूर रेखा कहते हैं जो समुन्द्र सतह से निश्चित ऊंचाई वाले भूभाग से गुजरती हुई अपनी ऊँचाई की रेखाओ में आकर मिलती हैं। कंटूर रेखा की मदद से हम सर्वे मैपों पर किसी स्थान की समुन्द्र तल से ऊँचाई पता कर सकते हैं ।
ग्रिड रेखा: सर्वे मानचित्रों पर बैगनी रंग से खींची गयी रेखाएँ ग्रिड रेखाएँ कहलाती है। जो मैप पर वर्ग बनाती हैं। उत्तर से दक्षिण की खड़े रुख में खींची गयी रेखाएँ पूर्वी रेखाएँ (देशांतर) कहलाती हैं और पूर्व से पश्चिम में पड़े रूप में खींची हुई रेखाएँ उत्तर रेखाए(आक्षांश) कहलाती हैं और इनके द्वारा बने हुए जाल को ग्रिड(Grid) कहते हैं ।

5. प्राथमिक उपचार:

प्राथमिक उपचार, उसके उद्देश्य व सिद्धांतों के बारे में हम प्रथम सोपान में अध्ययन कर चुके हैं । यहां हम प्राथमिक उपचार के बारे में और जानकारी हासिल करेंगे ।

a) खून बहना, जलना, मोच आना , डंक तथा डसने का उपचार :

खून बहने पर प्राथमिक उपचार :




अगर आपको या आपके आस-पास किसी व्यक्ति को चोट लग गई है और खून बह रहा है, तो आप निम्नलिखित तरीके से प्राथमिक उपचार कर सकते हैं –

• सबसे पहले घायल व्यक्ति का शांत रहना आवश्यक है क्योंकि घबराहट से दिल की धड़कन तेज हो जाती है और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है, जिससे खून और तेजी से बहने लगता है।
• घायल व्यक्ति को शांत करें और उन्हें आश्वासन दें।
• अगर बहुत अधिक खून बह रहा है, तो एम्बुलेंस को बुलाएं या व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं।
• जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी व्यक्ति को लिटा दें।
• घाव वाली जगह को हिलाए नहीं।
• अगर घाव व्यक्ति के सिर, गर्दन, पीठ या पैर में है, तो उस व्यक्ति को बिलकुल न हिलाएं। अगर घाव पर धूल-मिट्टी या कपड़ा है, तो उसे हटाने का प्रयास करें।
• त्वचा में अंदर तक घुसे हुए हथियार या अन्य चीजें जैसे सुई या कील निकालने की कोशिश न करें। ऐसा करने से और अधिक नुकसान हो सकता है और ब्लीडिंग बढ़ सकती है।
• खून को रोकने के लिए घाव पर बैंडेज, पट्टी या एक साफ़ कपड़ा रखें और उस पर दबाव बनाएं।
• अगर घाव आंख पर है, तो उस पर दबाव न बनाएं।
• अगर त्वचा में कोई वस्तु अंदर तक घुस गई है, तो न उसे निकालने का प्रयास करें और न उस पर दबाव बनाएं।
• हो सके तो घाव वाले क्षेत्र को दिल के स्तर से ऊपर उठा लें।
• अगर खून पट्टी लगाने के बाद भी बाहर आ रहा है, तो पट्टी को निकाले नहीं बल्कि उसके ऊपर और पट्टी लगाकर दबाव बनाएं।
• अगर ब्लीडिंग रुक गई है, तो पट्टी को हटाकर घाव को देखने का प्रयास न करें। ऐसा करने से खून बहना फिर से शुरू हो सकता है।

जल जाने पर प्राथमिक उपचार :



जलना घर में लगने वाली आम चोटों में से एक है। जलने से त्वचा को गंभीर नुकसान होता है जिससे त्वचा की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। त्वचा के जलने से त्वचा के ऊतकों को नुकसान होता है। हीट या गर्मी के किसी स्त्रोत, जैसे गर्म धातु, करंट, गर्म पदार्थ या भाप के संपर्क में आने से त्वचा जल जाती है। अगर आपने प्रभावित क्षेत्र पर कपड़ा पहना हुआ है, तो वह गर्मी को बाहर निकलने नहीं देता जिससे और नुकसान होता है। ज़्यादातर लोग जलने के बाद बिना किसी गंभीर नुकसान के ठीक हो जाते हैं। गंभीर जलने की स्थिति में तुरंत चिकित्सा की आवश्यकता होती है नहीं तो पीड़ित व्यक्ति को गंभीर नुकसान हो सकता है और उसकी मौत भी हो सकती है।

जलने के स्तर और गंभीरता : जलने पर शरीर को होने वाले नुकसान को डिग्री में वर्गीकृत किया जाता है। जो निम्नलिखित हैं :
• पहली डिग्री: जलने का सबसे कम गंभीर प्रकार वह होता है जिसमें त्वचा की केवल ऊपरी परत ही जलती है। इस परत को एपिडर्मिस (Epidermis) कहा जाता है। पहली डिग्री के जलने में त्वचा की ऊपरी सतह में लाली, सूजन व दर्द होता है और अंदर की परतों को नुकसान नहीं होता है। इसे तब तक माइनर बर्न (Minor burn) माना जाता है जब तक हाथों, पंजों, चेहरे, पेट व् जांघ के बीच के भाग और कूल्हों के ज़्यादा हिस्से नहीं जलते।
• दूसरी डिग्री: अगर जलने के कारण त्वचा की पहली और दूसरी दोनों परतों को नुकसान होता है, तो उसे सेकंड डिग्री बर्न कहा जाता है। त्वचा की दूसरी परत को डर्मिस (Dermis) कहते हैं। इसमें त्वचा पर फफोले व बड़े धब्बे हो जाते हैं और उसका रंग अधिक लाल होने लगता है। दूसरी डिग्री से जलने पर बहुत दर्द और सूजन होती है।
• तीसरी डिग्री: सबसे गंभीर तरह से जलने को थर्ड डिग्री बर्न कहा जाता है। इसमें त्वचा की सारी परतें जल जाती हैं और व्यक्ति को दर्द नहीं होता। इससे प्रभावित क्षेत्र में मौजूद फैट, मांसपेशियां और यहां तक की हड्डियां भी जल सकती हैं। जला हुआ हिस्सा काला पड़ जाता है और सूखा हुआ व सफ़ेद दिख सकता है।

जल जाने पर क्या लगाना चाहिए : गंभीरता और शरीर को होने वाले नुकसान के आधार पर जलने को मेजर और माइनर बर्न में वर्गीकृत किया जाता है। अगर जलने से शरीर को अधिक नुकसान हुआ है, तो उसे मेजर बर्न (Major burn) कहते हैं और अगर कम नुकसान हुआ है, तो उसे माइनर बर्न (Minor burn) कहते हैं।

माइनर बर्न के लिए फर्स्ट ऐड:
 जले हुए क्षेत्र को थोड़े ठन्डे पानी में रखें या दर्द ठीक होने तक ठंडी सिकाई करें।
 प्रभावित क्षेत्र में सूजन होने से पहले जल्दी से अंगूठी और ऐसी अन्य टाइट वस्तुओं को उतार दें।
 अगर त्वचा पर फफोला बन गया है, तो उसे फोड़े नहीं क्योंकि यह त्वचा को इन्फेक्शन से बचाता है। अगर यह अपने आप फूट जाता है, तो उस जगह को पानी से साफ कर लें और उस पर एंटीबायोटिक दवा लगा लें। अगर चकत्ते होते हैं, तो यह दवा लगाना बंद कर दें।
 प्रभावित क्षेत्र के ठंडा होने के बाद उसपर एलोवेरा युक्त कोई लोशन या मॉइस्चराइज़र लगाएं। इससे घाव सूखता नहीं है और आराम मिलता है।
 जले हुए हिस्से पर पट्टी लगाएं और अधिक रुई का इस्तेमाल न करें। इसे ढीला बांधें ताकि जले हुए हिस्से पर दबाव न बने। पट्टी लगाने से घाव पर हवा नहीं लगती, दर्द कम होता है और त्वचा पर छाले नहीं होते।
 अगर आवश्यकता है तो मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली कोई दर्द निवारक दवा लें।

मेजर बर्न के लिए फर्स्ट ऐड
अगर हो सके तो व्यक्ति के आस-पास से करंट या जलने वाले स्त्रोत को हटाएं। अगर व्यक्ति करंट से जला है, तो उसकी मदद करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि उसके आस-पास से करंट का स्त्रोत हटा दिया गया हो।
 यह चेक करें कि व्यक्ति सांस ले रहा है या नहीं। अगर आपको आता है तो उसे “माउथ-टू-माउथ” तरीके से सांस दें।
 जले हुए क्षेत्र और गले पर से बेल्ट या अंगूठी जैसी टाइट वस्तुएं हटा दें।
 जले हुए क्षेत्र को कवर करने के लिए ठंडे और हल्के गीले कपड़े से ढकें।
 अगर हो सके तो जले हुए क्षेत्र को हृदय के स्तर से ऊपर की तरफ उठाएं।
 जले हुए बड़े घावों को पानी में न डुबाएं। इससे शरीर की हीट गंभीर स्तर पर कम हो सकती है।

मोच (Sprains) आने पर प्राथमिक उपचार: एड़ी में मोच या मरोड़ आ जाना एक आम समस्या है। यह तब होता है जब पैर गलत तरीके से मुड़ जाता है। पैर मुड़ने से एड़ी के लिगामेंट्स में खिंचाव आ जाता है या लिगामेंट्स फट जाते हैं। लिगामेंट्स रेशेदार ऊतकों की पट्टी होती है जो जॉइंट्स पर हड्डियों को आपस में जोड़े रखती है। ये लिगामेंट्स शरीर में लगभग उन सभी जगह होते हैं जहाँ दो हड्डियाँ का जोड़ होता है। अतः मोच सिर्फ एड़ी में ही नहीं बल्कि कंधे , घुटने या गर्दन में भी आ सकती है।
मोच आने पर क्या करें:
मोच आने पर प्राथमिक उपचार के तौर पर RICE नामक उपचार करना चाहिए। इसका अर्थ है –
R – Rest
I – Ice
C – Compression
E – Elevation
इन्हे इस प्रकार समझा जा सकता है –
Rest – आराम
मोच आये हुए अंग पर ज्यादा भार नहीं आना चाहिए यानि पैर में मोच जाये फिर भी खेलना या चलना जारी रखें तो यह गलत होगा। जहाँ तक संभव हो उस अंग को आराम मिलना चाहिये। उस अंग को थोड़ा बहुत हिला सकते हैं। बिल्कुल भी नहीं हिलाने से परेशानी बढ़ सकती है। थोड़ा बहुत काम किया जा सकता है।
Ice – बर्फ
चोट लगने पर तुरंत उस स्थान पर बर्फ की सिकाई करनी चाहिए। यह सिकाई 15 मिनट तक हर तीन-चार घंटे के अंतराल में की जा सकती है। इसे दो दिन तक करें। इससे दर्द और सूजन में आराम आता है। बर्फ को किसी मोटे कपड़े में लपेटकर सिकाई करें। बर्फ सीधे त्वचा पर न लगाएं। किसी-किसी को बर्फ से परेशानी हो सकती है , ऐसे में बर्फ ना लगायें। दो दिन के बाद बर्फ की बजाय गर्म सिकाई करना ठीक रहता है।
Compression – दबाव का सहारा
इसका अर्थ है की क्रेप बैंडेज जैसी व्यवस्था करके हल्के दबाव के साथ मोच के स्थान को बांध देना ठीक रहता है। इससे चोट लगे स्थान को सहारा मिलता है मोच अधिक बढ़ती नहीं है। लेकिन यह इतना ज्यादा टाइट नहीं होना चाहिए कि खून का दौरा ही रुक जाये।
Elevation – ऊँचा रखना
इसका मतलब है की चोट लगे हुए स्थान को कुछ ऊपर उठा देना चाहिए अर्थात हृदय के स्तर से कुछ ऊपर। ऐसा करने से चोट लगे स्थान के आसपास इकठ्ठा हुआ द्रव कम हो जाता है और सूजन कम हो जाती है। इससे दर्द में भी आराम मिलता है।
यदि दर्द या सूजन कम ना हो और तकलीफ बढ़ जाये तो अतिरिक्त इलाज की जरुरत हो सकती है। ऐसे में तुरंत चिकित्सक से संपर्क करके इलाज करवाना चाहिए। MRI के माध्यम से पता लगाया जा सकता है की लिगामेंट्स पर कितना अधिक असर हुआ है। कभी-कभी सर्जरी की भी आवश्यकता भी पड़ जाती है।

बिच्छू के डंक मारने पर :



दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में बिच्छू पाए जाते हैं। बिच्छू इंसानों को अपनी पूंछ से डंक मारते हैं, हालांकि ऐसे मामले बहुत कम होते हैं जिनके काटने पर घाव या प्रतिक्रिया होती है, जिससे सूजन और लाली जैसे लक्षण होते हैं। बिच्छू के काटने पर कुछ गंभीर लक्षण भी हो सकते हैं, जो डंक मारने के कुछ समय बाद दिखने लगते हैं। इनके डंक से आमतौर पर कोई गंभीर प्रभाव नहीं होता है, लेकिन कुछ तरह के बिच्छुओं के काटने से गंभीर लक्षण और मौत भी हो सकती है।

बिच्छू के काटने के बाद होने वाले सामान्य से गंभीर लक्षण निम्नलिखित हैं –
• काटने की जगह पर दर्द, झुनझुनी, जलन या सुन्न महसूस होना।
• निगलने में कठिनाई।
• डंक वाली जगह पर सूजन होना।
• प्रभावित क्षेत्र पर लाल दाग और तेज दर्द।
• मांसपेशियों में एँठन ।
• थकान महसूस होना।
• जीभ की सूजन।
• सांस लेने में दिक्कत।
• दस्त होना।
• अनियमित दिल की धड़कन।
• पेट दर्द होना।
• पेशाब करने में दिक्कत और कम पेशाब आना।
• चक्कर आना।
• अधिक लार बनना।

बिच्छू के काटने पर निम्नलिखित तरीके से प्राथमिक उपचार किया जा सकता है –
 डंक वाले क्षेत्र को पानी और साबुन से धो लें।
 हो सके तो प्रभावित क्षेत्र को हृदय के स्तर से ऊपर उठा लें।
 अगर घायल व्यक्ति ने प्रभावित क्षेत्र में कोई ज्वेलरी पहनी है, तो उसे उतार दें।
 डंक वाली जगह के थोड़ा ऊपर की तरफ एक पट्टी बांध दें। पट्टी को ज्यादा टाइट न बांधें, इससे खून का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है।
 प्रभावित क्षेत्र पर 10 से 15 मिनट के लिए ठंडी सिकाई करें। बर्फ के टुकड़ों को सीधे त्वचा पर न रखें, उन्हें किसी कपड़े या तौलिये में लपेट लें।
 घाव से जहर चूसकर निकलने का प्रयास न करें।
 अगर व्यक्ति सांस नहीं ले रहा है, तो उसे सीपीआर दें।
 अगर 5 साल से छोटे बच्चे को बिच्छू ने काटा है, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं।
 अगर बिच्छू काटने के बाद लक्षण बढ़ने लगते हैं, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।

कुत्ते के काटने पर प्राथमिक उपचार
पालतू जानवर, आवारा या जंगली जानवर, जिन्हे प्रतिरक्षित टीके ना लगे हों तो, उनसे रेबीज होने की जोखिम बहुत बढ़ जाती है।
लक्षण:
• त्वचा का निकलना या रगड़ खाना
• खरोंच या जख्म आना
• कटना
• खून बहना
• सूजन आना
• पानी का बहना ।
इलाज:
 प्रभावित व्यक्ति को शांत रखिये।
 घाव का उपचार करने के पहले हाथों को धोयें ।
 घाव को साबुन और साफ पानी से धोयें ।
 एंटीबायोटिक मलहम लगायें।
 जीवाणुरहित कपड़े की पट्टी का उपयोग करें।
 प्राथमिक उपचार के बाद,चिकित्सा जल्दी की जानी चाहिए।
 टेटनस बूस्टर या एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होती है।

b) प्राथमिक उपचार में पट्टियों की जानकारी

i. रोलर पट्टी
ii. त्रिकोण पट्टी

i. रोलर पट्टी (Roller Bandage) पट्टी के उपयोग का प्रदर्शन करना:
रोलर पट्टी लंबी पट्टी होती है जिसे आसानी से उपयोग में लिया जा सकता है। यह विभिन्न चौड़ाई और गुणवत्ता में आती है। यह पट्टी शरीर में खिंचाव नहीं करती है और शरीर के जिस हिस्से के चारों ओर इसे बांधा जाता है वहाँ से यह फिसलती नहीं है। घायल जोड़ों या मांसपेशियों को सहायता प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार की पट्टियों का उपयोग किया जा सकता है। वे पैड तथा ड्रेसिंग को भी सुरक्षित कर सकते हैं। यह पट्टी रक्त स्त्राव को नियंत्रित करने के लिए भी उपयोग की जाती है ।
घुमावदार पट्टी को बांधने का तरीका: पट्टी को ऐसे पकड़ें ताकि चिकना हिस्सा या ऊपरी हिस्सा शीर्ष पर हो और पूंछ अंदर की ओर हो। घुमाव वाला हिस्सा एक हाथ से दूसरे हाथ में पास कराते जाइए और इसको खोलते रहें। सुनिश्चित करें कि प्रत्येक घुमाव इसकी चौड़ाई से पिछ्ले घुमाव के दो तिहाई हिस्से को ढकता रहे। टेप के साथ पट्टी के सिरों को जकड़ें या अंदर खींचें और चेक करें कि पट्टी बहुत तंग तो नहीं है।

ii. त्रिकोण पट्टी (Triangular Bandage):
त्रिकोणीय पट्टियाँ लिनन व कैलिको(Calico) के कपड़े के टुकड़ों को काटकर बनाई जाती है। इस पट्टी के तीन बॉर्डर होते हैं: सबसे लंबे बोर्डर को आधार तथा अन्य दो को भुजाएं कहते हैं। इसमें तीन कोने होते हैं : ऊपरी कोना जो आधार के विपरीत होता है उसको पॉइंट (Point) कहा जाता है और दूसरे कोनों को सिरा बिंदु (End)कहते हैं।




पट्टी को निम्न प्रकार से उपयोग किया जाता है:
 सिर के लिए (For Head): आधार के साथ पट्टीका के एक सिरे को अंदर की तरफ मोड़िए। अब सिर पर लगी चोट के पीछे खड़े हो जाएँ और खुली हुई पट्टी को माथे के पास व भौंहों के नजदीक रखें और पॉइंट को उसके सिर के नीचे पीछे की और लटका दें। सिरा बिन्दुओं (Ends) को सिर के पीछे से कानों के ऊपर ले जाएं। गर्दन के नेप (Nape) के पास नीचे पट्टी के पॉइंट पर Ends को पार करें। उन्हें कानों के ऊपर सिर के चारों ओर लाएँ । उन्हें पट्टी की निचली बोर्डर के करीब माथे पर एक गांठ बांध दें। एक हाथ से चोट लगे सिर और दूसरे के साथ पट्टी को नीचे की ओर खींचते हुए स्थिर रखें। इसके बाद इसे ऊपर की ओर मोड़ें और चोट के शीर्ष पर पट्टी पर पिन करें।




 हाथ के लिए (For Hand): कलाई को पट्टी के आधार(Base) के साथ हाथ के नीचे एक खुली पट्टी पर रखें । पॉइंट को हाथ की कलाई के ऊपर लाएं और पट्टी आधार के साथ दाईं भुजा को अंदर की ओर मोड़ें और हाथ के दूसरी ओर पास करें। इसी प्रकार बाईं भुजा को दूसरी दिशा में मोड़ दें। अब दोनों भुजाओं को हाथ के बीच में रीफ़ knot लगाकर बांध दें। ऊपरी अंग के घावों के लिए ड्रेसिंग और पट्टी के लगाने के बाद उस अंग को एक गोफन(Sling) द्वारा सहारा दिया जाना चाहिए।




 घुटने के लिए (For Knee): चोट लगे घुटने को दाईं ओर मोड़ें। खुली पट्टी के आधार के साथ एक संकरी हेम को अंदर की ओर मोड़ो। पॉइंट को उसकी जाँघ पर रखो और आधार के बीच उसके घुटने के नीचे रखो । घुटने के पीछे की तरफ दोनों सिरों को पार करें। अब जांघ के चारों तरफ एक घुमाव लगाएँ और ऊपर की तरफ एक गांठ लगा दें । पॉइंट को नीचे की ओर गाँठ और घुटने के ऊपर लाइए और इसे पिन करें।





 पैर के लिए (For the Foot): चोट लगे हुये पैर को खुली पट्टी के बीच पैर की अंगुली पॉइंट की ओर रखें। पैर की तरफ पॉइंट के छोर को लाओ। दोनों सिरों(Ends) को आगे लाइये ताकि उसकी एड़ी ढंकी हो और उन्हें पार(Cross) करो। अब टखने, पीछे की ओर दोनों सिरों (Ends) को पार करें और फिर उन्हें अंदर बाँध लें। पॉइंट को आगे खींचें और इसे पिन करें।





 भुजाओं का फ्रैक्चर (Fracture of Arm): व्यक्ति के बगल में एक पैड रखें। गद्देदार कमची (Splint) का प्रयोग करें। गर्दन और कलाई के चारों ओर एक संकरे पैड के साथ निचले हाथ को सहारा दें । ऊपरी बांह को सीने से बांधने के लिए एक चौड़ी पट्टी का उपयोग करें।




c) स्ट्रेचर को सुधारना व तुरंत स्ट्रेचर बनाना (Improvise a Stretcher):

स्ट्रेचर क्या है : किसी मरीज या रोगी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लिटाकर ले जाने के लिए स्ट्रेचर का उपयोग किया जाता है ।

इंप्रोवाइज्ड स्ट्रेचर: इसकी तीन विधियां हैं:

i. Tarp स्ट्रेचर
ii. Jacket स्ट्रेचर
iii. Rope स्ट्रेचर

i. Tarp स्ट्रेचर: एक कपड़ा सीधा फैला कर रखें। किनारों के बीच की दूरी के लगभग दो तिहाई भाग पर एक पोल रखें। कपड़े के छोटे वाले भाग को खोल के ऊपर मोड़ें और अब एक और पोल मुड़े हुए किनारे पर रखें । अब कपड़े को दूसरी साइड से दूसरी लकड़ी पर मोड़ दें । रोगी का वजन इसको टाइट कर देगा।




ii. जैकेट स्ट्रेचर: जैकेट की दोनों बाजुओं को उल्टा करके जैकेट के अंदर कर दें। अब दो पोल जैकेट के अंदर डालें और बाजू को अंदर की तरफ से पोल के चारों तरफ लपेटें। स्ट्रेचर को मजबूती प्रदान करने के लिए पोल के सिरों पर एक पोल लंबवत रखकर विकर्ण लैशिंग लगा दीजिए।




iii. रोप स्ट्रेचर: रस्सी के मध्य का उपयोग करते हुए एक जिगजैग (ZigZag) पैटर्न बिछाएँ जो लगभग एक फुट लंबा और मरीज से एक फुट चौड़ा हो। रस्सी के छोर को प्रत्येक पाश(loop) में बांधने के लिए खूंटा गांठों(Clove Hitches) का उपयोग करके स्ट्रेचर के प्रत्येक साइड में लगाएं । स्ट्रेचर के किनारे पर बनाए गए पाश (loop) के बीच से बची हुई रस्सी को खूंटा गांठ(Clove Hitch) लगाकर खींचे। स्ट्रेचर को अतिरिक्त मजबूती देने के लिए पतले डंडे का उपयोग किया जा सकता है।




6. अनुमान लगाना (Estimation):

किसी भी चीज का अनुमान लगाना तथा पता करने का सरल नियम है कि अपने आप से शुरुआत कीजिए। कोई भी स्वयं का इस्तेमाल करके ऊंचाई, दूरी, वजन, संख्या आदि का लगभग अनुमान लगा सकता है। अनुमान लगाने से पहले स्काउट को अपने व्यक्तिगत माप का पता होना चाहिए और अपनी नोटबुक या डायरी में निम्नलिखित चीजें लिखकर रखनी चाहिए:
• खुद की ऊंचाई (मीटर में, फुट में, इंच में)
• धरातल से अपनी आंखों की ऊंचाई
• हाथों को ऊपर करके जमीन से मध्य अंगुली के टिप तक की ऊंचाई
• अपने पैर की लंबाई (अंगूठे से एड़ी तक)
• अपने एक बलिश्त की नाप
• अपने साधारण चलने के एक कदम की दूरी
• सौ कदम दौड़ने की दूरी
• कंधों की ऊंचाई

a) दूरी नापना:

छोटी दूरी का अनुमान लगाने के लिए रस्सी, हाथ का बलिश्त, अंगूठे की लंबाई, छोटी अंगुली इत्यादि का उपयोग करना चाहिए। सेंटीमीटर और इंच में चिन्हित दूरी बेहद उपयोगी होती है। लंबी दूरी का अनुमान लगाने के लिए अपने चलने या कदमों की दूरी का इस्तेमाल करना चाहिए। ज्यादा सटीक माप के लिए पहले से नापी हुई रस्सी का इस्तेमाल करना चाहिए। एक नदी के आर-पार की दूरी का पता लगाने के लिए सामने किनारे पर एक वस्तु X मान लीजिए जैसे सामने का पेड़ या चट्टान। बिंदु A इसके 90 डिग्री (समकोण)पर हो। बिंदु A से लगभग 50 कदम की दूरी चलिए। इसको बिंदु B बना दीजिए। इस बिंदु पर कोई निशान लगा दीजिए। उसी दिशा में बिंदु B से 50 कदम और चलिए इसको बिंदु C चिन्हित कर दीजिए। अब बिंदु C से बाएं तरफ 90 डिग्री पर घूम जाइए। आप अपने कदमों को गिनते हुए चलना शुरू कीजिए और तब तक चलिए जब तक बिंदु B से ठीक गुजरते हुए अपनी आंखों से वस्तु X को ना देख लो । जहां से बिंदु B की सीध में वस्तु X दिखती है उस स्थान को बिंदु D चिन्हित कर दीजिए। आपने बिंदु C से बिंदु D तक जितने कदम तय किए हैं, वह उस नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे के बीच की दूरी है।


b) चौड़ाई का अनुमान लगाना:

इसके अंतर्गत हम दो विधियों के बारे में जानेंगे:
i. नेपोलियन विधि
ii. कम्पास विधि

नेपोलियन विधि: एक किनारे पर खड़े हो जाइए। अपने सिर को झुकाइए। ठोढ़ी को सीने पर लगाइए। हथेली नीचे किए हुए हाथ को माथे पर रखिए। अब हाथ को धीरे-धीरे नीचे की ओर लाइए जब तक आपके हाथ का अग्रभाग सामने वाले किनारे को छूता हुआ प्रतीत ना हो । अब 45 डिग्री पर दायीं ओर घूम जाइए। अपने किनारे पर उसी प्रकार हाथ के अग्रभाग का इस्तेमाल करते हुई एक बिंदु या स्थान का पता कीजिए। उस पता किए हुए स्थान तक कदम गिनते हुए चलिए यही उस नदी की चौड़ाई है।





कम्पास विधि: नदी के एक किनारे पर खड़े हो जाइए। माना यह बिंदु B है। अब सामने के किनारे पर किसी वस्तु जो ठीक सामने हो उसको बिंदु A मान लीजिए। अब अपने कम्पास की ट्रैवल डायरेक्शन एरो (Travel Direction Arrow) को बिंदु A की तरफ कीजिए। अब कम्पास के डायल को तब तक घुमाइए जब तक कम्पासीय सूई Orienting Arrow के ठीक ऊपर ना आ जाए। अब कंपास के डिग्री को पढ़िए जैसे 120 डिग्री। अब उसमें 45 डिग्री जोड़ दीजिए। अतः यह अब 165 डिग्री हो गया। अब ट्रेवल एरो (travel arrow) को A की तरफ रखते हुए नदी के किनारे पर चलिए। जब कंपास ओरियंट या मिलान हो जाए तब रुक जाइए। यह बिंदु C है। बिन्दु C और B के बीच की दूरी नदी की चौड़ाई है।



7. बाहरी गतिविधियां (OUT OF DOORS):

a) ट्रूप के खेल में भाग लेना:

साँप और नेवला खेल
इस खेल में एक फूर्तीला खिलाड़ी नेवला बनता है। बाकी सब खिलाड़ी एक-दूसरे के पीछे झुक कर खड़े हो जाते हैं। सब से बड़ा खिलाड़ी सबसे आगे, उससे छोटा उससे पीछे और इसी तरह नम्बर वार सबसे छोटा आखिर में रहता है। इसमें सबसे आगे का खिलाड़ी साँप का फन और सबसे पीछा का खिलाड़ी साँप की पूँछ कहलाता है। खेल शुरू करने के लिए साँप अपने सिर को ऊँचा करके अपने दोनों हाथ फैलाता है और मुँह से बड़े जोर से साँप जैसी आवाज ’हिस’ करता है। इस पर सब खिलाड़ी भी वैसी ही आवाज ’हिस‘ करने लगता हैं। अब नेवला साँप के आगे कुछ फासले पर खड़ा हो जाता है। साँप ’हिस‘ करता हुआ दौड़कर नेवले को पकड़ने की कोशिश करता है। नेवला साँप से इधर- उधर बचते हुए उसकी पूँछ पकड़ने की कोशिश करता है। साँप की पूँछ भी इधर- उधर को बचने की कोशिश करता है। अगर साँप नेवले को पकड़ लेता है तो नेवले की हार होती है और अगर नेवला साँप की दुम पकड़ लेता है तो साँप की हार होती है।दूसरी बार खेल शुरू करने के लिए नया साँप और नया नेवला चुने जाते है।

b) देशभक्ति गीत :

शीर्षक : मेरे देश की धरती

मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं
सुन के रहट की आवाज़ें यूँ लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है
क्यों ना पूजें इस माटी को जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिसने जन्म लिया उसने ही पाया प्यार तेरा
यहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे है माँ उपकार तेरा
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती
ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगतसिंह से रंग अमन का वीर जवाहर से
मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

शीर्षक : जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ

जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती है बसेरा
वो भारत देश है मेरा।
जहाँ सत्य अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा
वो भारत देश है मेरा।
ये धरती वो जहाँ ॠषि मुनि जपते प्रभु नाम की माला
जहाँ हर बालक एक मोहन है और राधा हर एक बाला
जहाँ सूरज सबसे पहले आ कर डाले अपना फेरा
वो भारत देश है मेरा।
अलबेलों की इस धरती के त्योहार भी हैं अलबेले
कहीं दीवाली की जगमग है कहीं हैं होली के मेले
जहाँ राग रंग और हँसी खुशी का चारों ओर है घेरा
वो भारत देश है मेरा।
जहाँ आसमान से बातें करते मंदिर और शिवाले
जहाँ किसी नगर में किसी द्वार पर कोई न ताला डाले
प्रेम की बंसी जहाँ बजाता है ये शाम सवेरा
वो भारत देश है मेरा।

c) वाहनों के लिए सड़क सुरक्षा नियम :

बढ़ते यातायात को देखते हुए देश मे ही नहीं अपितु दुनिया भर मे कुछ यातायात नियम (Traffic Rules) बनाए गये हैं । जिससे बढ़ते ट्रेफिक को कंट्रोल किया जा सके और दुर्घटनाओं से भी बचा जा सके। यातायात नियम अनुपालन करने से ना केवल यातायात सुगम बना रहता है बल्कि दुर्घटनाएँ भी कम होती हैं ।
यातायात के नियम :
 अपने वाहन की पार्किंग का ध्यान रखें : अपने वाहन की पार्किंग इस तरह से ना करें , कि वह दूसरों के लिए मुश्किल बन जाए। आप थोड़े समय के लिए भी पार्किंग करना चाहे, तब भी सही जगह पर ही करें, ताकि दूसरों को कोई दिक्कत ना हो।
 सड़क पर ड्राइव करते समय ओवेरटेक ना करें : जब भी आप ड्राइव करते हैं तो किसी से रेस ना लगाएँ । यह जरूरी नहीं कि कोई आपसे आगे निकल गया, तो आप भी उससे आगे निकलें और यातायात के नियम को तोड़े। अगर आप यातायात के नियम का पालन करते हुये गाड़ी चलाते हैं, तो यह आपके साथ-साथ दूसरों के लिए भी अच्छा होगा।
 बहुत ज्यादा और लगातार हॉर्न का उपयोग न करें : अगर आप लगातार हॉर्न बजाते हैं तो इसका मतलब यह नही, कि आगे लगा हुआ जाम जल्दी साफ हो जाएगा। इससे सिर्फ सामने वाले व्यक्ति पर दबाव बनता है और ध्वनि प्रदूषण फैलता है। इससे अच्छा होगा कि आप थोड़ा इंतजार करें और सामने वाले को निकलने का मौका दें।
 एक तरफा रोड : जब आप एक तरफा रोड़ पर होते हैं तो उसे अनुपालन करें तथा उसे तोड़ें नहीं । यह कुछ दूरी के लिए होता है। यह ड्राईवर की सुविधा के लिए ही बना होता है। अगर कोई अपने समय को बचाने की उम्मीद से गलत साइड में चलता है तो वह अपने साथ-साथ दूसरों की भी जान जोखिम में डालता है।
 लेन अनुशासन : अगर आप किसी लेन मे हो तो उसे फॉलो करें। बिना किसी अनुदेश के लेन को तोड़ें नहीं। अगर कोई व्यक्ति अपने समय को बचाने की दृष्टि से लेन को तोड़ता है तो वह आने वाले वाहनो को प्रभावित करता है।
 यू – टर्न : यह ध्यान रखिए की यू-टर्न ड्राईवर का अधिकार नहीं है। यह बस ड्राईवर की सुविधा के लिए बना होता है। जब भी आप यू-टर्न पर हो तो आगे पीछे के ट्रैफिक को देख लें तथा सभी की सुविधाओं को देखते हुये यू-टर्न लें ।
 हाथ सिग्नल : अगर आप हाथ सिग्नल का उपयोग करते हैं तो यह आपके पीछे चल रहे व्यक्ति के लिए सुविधा होती है। इससे आपके पीछे चल रहा व्यक्ति आपके साइड को समझ कर सेफ ड्राइविंग कर सकता है।
 गति प्रतिबंध : ड्राइविंग करते समय गति सबसे बड़ा फैक्टर होता है। अक्सर देखा जाता है कि रोड के अच्छे होने पर ड्राईवर के द्वारा स्पीड बढ़ा ली जाती है, परन्तु ऐसा नही होना चाहिए।

भारत में यातायात के मुख्य संकेत :



भारत में यातायात के संकेतों का अनुपालन करना अतिआवश्यक है। इससे सड़क दुर्घटना जैसे हादसों से बचा जा सकता है। ये यातायात के मुख्य तीन संकेत किसी भी शहर के चौराहों पर लगे होते हैं। ये संकेत तीन रंग को दर्शाते हैं । जिनके बारे में यहाँ बताया जा रहा है –
लाल बत्ती : यातायात के मुख्य तीन संकेतों में से लाल बत्ती का मतलब होता है, रुकना। अर्थात् जब भी आप किसी चौराहे से गुजरते हैं तो आपको वहाँ जब लाल बत्ती जलती हुई नजर आये तो आपको वहाँ रुकना होगा।
पीली बत्ती : पीली बत्ती का मतलब होता है चलने के लिए तैयार हो जाना। अर्थात् जब आप लाल लाइट पर रुकते है इसके बाद जब पीली लाइट जलती है तो यह आपको चलने के लिए तैयार हो जाने का संकेत देती है।
हरी बत्ती : हरी बत्ती का मतलब होता है जाना। अर्थात जब सिग्नल में हरी लाइट जलती है तो इसका अर्थ यह है कि आपको चलना है।
इस प्रकार आप इन संकेतों का अनुपालन करके दुर्घटना होने से बच सकते हैं।

क्र.सं.यातायात के चिन्हयातायात के चिन्ह का नामयातायात के चिन्ह के अर्थ
1Traffic Rules In Hindi एक तरफा ट्रैफिक (No Entry,One Way)सिर्फ आने का एक तरफा रास्ता है।
2Traffic Rules In Hindi एक तरफा ट्रैफिक ( One Way)एक तरफा जाने का रास्ता ।
3Traffic Rules In Hindi दोनों दिशाओं में वाहन चलाना वर्जित हैइस एरिया में कोई भी वाहन का ले जाना स्वीकार नहीं होता है ।
4Traffic Rules In Hindi No left turn बायीं तरफ नहीं मुड़ना हैइस साइन का मतलब होता है कि आप बायीं तरफ न मुड़ें ।
5Traffic Rules In Hindi No right turn दायीं तरफ नहीं मुड़ना हैइस साइन का मतलब होता है की आप दायीं तरफ न मुड़ें ।
6Traffic Rules In Hindi No overtaking नो ओवरटेकिंगइस साइन का मतलब होता है की आप किसी भी वाहन से आगे निकलने की कोशिश न करें।
7Traffic Rules In Hindi No parking नो पार्किंगइस एरिया मे किसी को भी अपने वाहन खड़े करने की अनुमति नहीं होती है ।
8Traffic Rules In HindiNo stopping नो स्टॉपिंगइस एरिया मे किसी भी वाहन को चलते समय रुकने की अनुमति नहीं होती है।
9ट्राफिक नियम यू टर्न नो यू – टर्नइस जगह पर आप किसी भी वाहन को वापस यू – टर्न नहीं कर सकते हैं।
10traffic rule ट्रक वर्जित हैंइस जगह पर ट्रक का चलना वर्जित होता है, अर्थात यहाँ बड़े वाहन को चलने की अनुमति नहीं होती है।
11साइकिल वर्जित साइकिल वर्जित हैंइस जगह पर साइकिल जैसे वाहन का आना वर्जित होता है. अर्थात छोटे वाहन का आना वर्जित होता है ।
12बैल गाड़ी, तांगा या हाथ गाड़ी वर्जित बैलगाड़ी, तांगा या हाथ गाड़ी वर्जित हैंइस जगह पर बैलगाड़ी, तांगा या किसी भी तरह की हाथ गाड़ी का आना वर्जित होता है ।
13पैदल व्यक्ति वर्जितपैदल चलने वाले व्यक्ति वर्जित हैंइस जगह पर पैदल चलने वाले व्यक्ति का आना निषेध है।
14मोटर वाहन वर्जितसभी मोटर वाहन वर्जित हैंइसका अर्थ यह होता है कि इस जगह पर किसी भी तरह के मोटर वाहन का आना मना है ।

d) साइकिल चलाना सीखना :

साइकिल चलाने के लिए सबसे पहले हमें यातायात नियम पता होने चाहिए। स्काउटिंग में साइकिल का उपयोग अपने पट्रोल या ट्रूप के साथ साइकिल रैली निकालकर सामाजिक संदेश देने के लिए किया जाता है। रोजाना हमें 3 से 4 किलोमीटर साइकिल चलानी चाहिए। साइकिल चलाने से हमारे शरीर का व्यायाम होता है और शरीर चुस्त और स्वस्थ रहता है।

e) अपने स्कूल / कॉलेज/ घर के नजदीकी फैक्ट्री का भ्रमण करना तथा उसमें बनने वाली वस्तुओं के बनने की विधि को समझना और मजदूरों का सम्मान करना :

हमारे विद्यालय के स्काउट ट्रूप ने हमारे विद्यालय के प्राचार्य से अनुमति लेकर स्काउट मास्टर के साथ विद्यालय के नजदीकी फैक्ट्री “बरोड़ा डेयरी” का भ्रमण किया। सबसे पहले सभी स्काउट्स, स्काउट मास्टर के साथ विद्यालय के प्रांगण में एकत्रित हुए। वहां सभी स्काउट्स अपने पट्रोल की लाइन में खड़े हो गए। बरोड़ा डेयरी, विद्यालय से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हमने स्काउट मास्टर व सहायक स्काउट मास्टर की निगरानी में सुबह 9:00 बजे बरोड़ा डेयरी जाने के लिए पैदल यात्रा शुरू की। हम सुबह 9:20 पर बरोड़ा डेयरी पहुंच गए। वहां पहुंचने पर हम सभी स्काउट्स को मार्गदर्शन करने तथा फैक्ट्री भ्रमण कराने के लिए फैक्ट्री की तरफ से एक कर्मचारी को नियुक्त किया गया। भ्रमण के दौरान हमने वहां विभिन्न प्रकार के दुग्ध उत्पाद जैसे दूध, मक्खन, पनीर, छाछ, दही इत्यादि बनते हुए देखा। हमने वहां दूध से लगभग 50 प्रकार के उत्पाद बनने के चार्ट देखे। उनसे हमारा ज्ञान व जानकारी बढी। वहां हमने बड़ी-बड़ी मशीनें देखी। हमने दूध का पाश्चुरीकरण देखा। जिसमें दूध को ज्यादा तापमान पर उबाला जाता है और फिर एकदम से ठंडा कर दिया जाता है। हमने वहां विभिन्न उत्पादों की पैकिंग भी देखी। यह सब ऑटोमेटिक हो रहा था। वहां गाइड ने हमको बताया कि हमारे डेयरी के वाहन विभिन्न गांवों से सुबह दूध लेकर डेयरी तक पहुंचाते हैं और डेयरी में इस दूध का प्रोसेस होता है। अंत में डेयरी की तरफ से हम सबको एक-एक आइसक्रीम खिलाई गई। कुल मिलाकर यह एक बहुत ही शानदार व ज्ञानवर्धक भ्रमण था। यहां हमने यह समझा कि डेयरी के उत्पाद व उनका संचालन हमारे देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान करता है। इसके बाद हम पंक्तिबद्ध होकर अपने विद्यालय की ओर प्रस्थान किए और इसकी रिपोर्ट स्काउट मास्टर को सौंपी।
(चित्र लगावें )

8. सेवा (Service):

तीन R का संरक्षण तथा प्रदर्शन:

तीन R का मतलब होता है REDUCE(कम उपयोग), REUSE(पुन: उपयोग) RECYCLE(पुन: चक्रण) , । इस नियम का उपयोग करने पर हम पर्यावरण में बढ़ रहे अपशिष्ट को कम कर सकते हैं और इनसे हो रहे पर्यावरण को नुकसान से भी बचा जा सकता है।
कम उपयोग (Reduce): 3 R का सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है कि हमें वस्तुओं का कम उपभोग करना चाहिए। जो चीजें हमारे जीवन में बहुत जरूरत की हों, वो ही खरीदनी चाहिए । जितनी कम चीजों का उपयोग करेंगे, उतना कम कचरा पर्यावरण में फैलेगा ।
पुन: उपयोग (Reuse): पुनः उपयोग में हम किसी वस्तु का बार-बार उपयोग करते हैं जिसे हम पुन: उपयोग में ले सकते हो। पुनः उपयोग, पुनःचक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि पुनःचक्रण में कुल उर्जा का कुछ भाग व्यय होता है। उदाहरण: लिफाफों को फेंकने की अपेक्षा हम फिर से उपयोग में ले सकते हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ आई प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बे इत्यादि का उपयोग रसोईघर में वस्तुओं को रखने के लिए किया जा सकता हैं।
पुनःचक्रण(recycle) : इसका अर्थ है कि हम प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुएँ तथा ऐसे ही पदार्थों का पुनःचक्रण करके उपयोगी वस्तुएँ बना सकते हैं । जब तक अति आवश्यक न हो इन वस्तुओं का नया उत्पादन/संश्लेषण विवेकपूर्ण नहीं है। इनके पुनः चक्रण के लिए पहले हमें इन अपद्रव्यों को अलग करना होगा जिससे कि पुनःचक्रण योग्य वस्तुएँ दूसरे कचरे के साथ भराव क्षेत्र में न फेंक दी जाएँ और फिर इन वस्तुओ का पुनःचक्रण करके उपयोग में ले ली जाती है।
यही नहीं हम दैनिक आवश्यकताओं और क्रियाकलापों पर निर्णय लेते समय भी हम पर्यावरण संबंधी निर्णय ले सकते हैं। इसके लिए हमें यह जानने की आवश्यकता है कि कोई वस्तु पर्यावरण पर किस प्रकार निर्भर करती है तथा इसका उपयोग करने पर पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है तथा ये प्रभाव तात्कालिक,दीर्घकालिक अथवा व्यापक हो सकते हैं। 3 R के संदेश को आम आदमी तक पहुंचाने तथा समझाने के लिए हमारे विद्यालय के स्काउट ट्रूप ने साइकिल रैली का आयोजन किया। इसके लिए हमारे ट्रूप ने बैनर बनाकर व नारे लगाकर यह संदेश जन-जन तक पहुंचाया। इनमें कुछ नारे निम्नलिखित हैं :



वस्तुओं का करो पुनः चक्रण,
तभी होगा पर्यावरण का संरक्षण।

पर्यावरण का होगा योग
जब चीजों का कम करोगे उपयोग।

इंसान का अब हो रहा टेस्ट
कम करो अब e-Waste

9. बोध प्रशिक्षण(Sense Training):

किम के निम्नलिखित खेलों को जानना और समझना:
किम खेल स्काउट द्वारा खेले जाने वाले खेल हैं। ये खेल एक व्यक्ति की अवलोकन क्षमता तथा याददाश्त को विकसित करते हैं। इस खेल का नाम रूडयार्ड किपलिंग के 1901 के उपन्यास “किम” से लिया गया है जिसमें नायक “किम” अपने प्रशिक्षण के दौरान एक जासूस के रूप में खेलता है।
अवलोकन खेल : इस तरह के खेलों में स्काउट की Observation Skills का टेस्ट होता है। जैसे : दो एक जैसी दिखने वाली तस्वीरों में अंतर ढूँढना, विशेष परिस्थितियों में उनके द्वारा बताए गए उपाय व सुझाव आदि।
स्वाद पहचानने के खेल (Taste Game): इस खेल में विभिन्न डिब्बों या बर्तनों में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे नमक, काला नमक, पिसी हुई काली मिर्च, जीरा, चीनी, सूजी, नीम के पत्ते , इमली, धनिया इत्यादि रख दिए जाते हैं। अब स्काउट की आंख पर पट्टी बांधकर उसको उन पदार्थों को बारी-बारी से चखना होता है और उन वस्तुओं का स्वाद व नाम बताना होता है। जो स्काउट सबसे ज्यादा सही उत्तर देता है वह विजेता होता है।
ध्वनि पहचानने के खेल(Sound Game): इस प्रकार के खेलों में विभिन्न परिस्थितियों में बिना वस्तु को देखे उसकी ध्वनि पहचाननी होती है और वस्तु का नाम बताना होता है।
गंध पहचानने के खेल(Smelling Game) : इस प्रकार के खेलों में बिना वस्तु को देखे, उसको सूंघकर उसकी गंध पहचाननी होती है और वस्तु का नाम बताना होता है।
वस्तु को छूकर पहचानना (Touch Game): इस प्रकार के खेलों में वस्तु को किसी कपड़े में या अपारदर्शी लचीले कवर में रखकर उसको छूकर वस्तु की सही पहचान करनी होती है ।

10. प्रवीणता बैज (Proficiency Badges) :

a) पशु-पक्षियों का मित्र (Friends to Animal):

इस बैज को प्राप्त करने हेतु एक स्काउट को निम्न बातों का पालन करना चाहिए:
i. निम्नलिखित जानवरों के बारे में उनकी सामान्य जानकारी रखना, उनकी आदतें, उनके खाने आदि की जानकारी होनी चाहिए:
घोड़ा या गधा, गाय या भैंस, भेड़ या बकरी, बिल्ली या कुत्ता, बैल या ऊंट ।
ii. इन जानवरों से होने वाली किसी क्षति या बुरी आदतों की जानकारी भी होनी चाहिए।
iii. इन जानवरों से होने वाली बीमारियों की जानकारी तथा इनके साधारण उपाय।
iv. इन पशु पक्षियों की देखभाल की जानकारी व ज्ञान और इनको अच्छी अवस्था में रखना तथा 12 महीनों में इनके स्वास्थ्य की जांच करवाना।
v. जानवरों के साथ कोई दुर्घटना होने पर क्या करना चाहिए इसकी जानकारी रखना। सरकार द्वारा उनके संरक्षण के कानूनों की जानकारी तथा इनके संबंध में पुलिस के अधिकार।
vi. जानवरों पर हो रहे अत्याचार की रोकथाम के लिए बनी किसी नजदीकी सोसाइटी का पता जानना।

b) बागवानी (Gardener):

i. 12 वर्ग मीटर या उससे ज्यादा की भूमि को खोदना। उसमें 6 प्रकार की सब्जियां उगाना। जिन शहरों में भूमि खोदना संभव ना हो वहां लकड़ी के डिब्बों तथा गमलों में सब्जियां उगाना।
ii. किसी सामान्य बगीचे में उगने वाले 12 पेड़ पौधों के नाम जानना। निम्नलिखित को समझना तथा जानना: छंटाई, पौधों को सहारा देकर बांधना, कलम लगाना, खाद देना इत्यादि तथा इनमें से किसी एक का प्रदर्शन करके दिखाना।
iii. किसी सार्वजनिक बाग या पड़ोसी के आंगन या चौक में उगे पेड़-पौधों की कम से कम 2 महीनों तक देखभाल करना।

11. अनुशासन(Discipline):

a) परेड ड्रिल :

परेड ड्रिल में एक स्काउट को केवल लेफ्ट- राइट यानि परेड करना ही नहीं सिखाया जाता है बल्कि उसको यूनिफार्म कैसे पहनना चाहिए, कैसे चलना चाहिए , कैसे बात करना चाहिए , कैसे लीडर से बात करना चाहिए , कैसे आदेश लेते है और कैसे अपने पट्रोल या ट्रूप को आदेश देते हैं इत्यादि सिखलाया जाता है । यही सब अनुशासन का एक हिस्सा है।
ड्रिल (Drill) : किसी प्रोसीजर को क्रमवार और उचित तरीके से अनुकरण करने की कार्रवाई को ड्रिल कहते हैं।

मार्चिंग(Marching) के दौरान ड्रिल कमांड:
i. सावधान : ड्रिल की कोई भी हरकत करनी हो तो वो सावधान पोजीशन से की जाती है और अपने से सीनियर से बात करनी या आदेश लेते समय सावधान पोजीशन को अख्तियार कर के ही की जाती है। सावधान में पैरों की एड़ियाँ मिली हुयी होती हैं और दोनों पंजों के बीच 30 डिग्री का कोण बना हुआ होना चाहिए । दोनों घुटने टाइट। दोनों हाथों की बाजूएँ दायीं और बायीं तरफ पैंट की सिलाई के साथ मिली हुयी और मुट्ठी कुदरती तौर पर बंद । सीना बाहर की तरफ उठा हुआ। कंधे पीछे खिंचे हुये व गर्दन एकदम सीधी। नज़र एकदम सामने ।
ii. विश्राम : ड्रिल की कोई भी कार्रवाई ख़त्म होने पर विश्राम पोजीशन में खड़े होते है। इसमें पैरों के मध्य कुछ जगह और हाथ पीछे की ओर होते हैं। यह एक स्वतंत्ररूप से आराम से खड़े होने की स्थिति है ।
iii. दाहिने मुड़: जैसे ही कमांड मिले परेड दाहिने मुड़, इस कमांड के ऊपर चटकी के दाहिने पैर की एड़ी को पिवोट बनाते हुवे 90 डिग्री दाहिने मुड़ की कार्रवाई करेंगे। शरीर का पूरा भार दाहिने पैर पर और बाएँ पैर की एड़ी को उठाकर जमीन पर रखना। दोनों हाथ बगल में चिपके हुए और नजर सामने सावधान पोजीशन में।
iv. बाएँ मुड़: जैसे ही कमांड मिले परेड बाएँ मुड़, इस कमांड के ऊपर चटकी के बाएँ पैर की एड़ी को पिवोट बनाते हुवे 90 डिग्री बाएँ मुड़ की कार्रवाई करेंगे। शरीर का पूरा भार बाएँ पैर पर और दायें पैर की एड़ी को उठाकर जमीन पर रखना। दोनों हाथ बगल में चिपके हुए और नजर सामने सावधान पोजीशन में।
v. पीछे मुड़ : जैसे ही कमांड मिला परेड पीछे मुड़ , इस कमांड के ऊपर चटकी के दाहिने पैर के एड़ी को पिवोट बनाते हुवे 180 डिग्री पीछे मुड़ की कार्रवाई करेंगे। शरीर का पूरा भार दाहिने पैर पर और बाएँ पैर की एड़ी को उठाकर जमीन पर रखना।। दोनों हाथ बगल में चिपके हुए और नजर सामने सावधान पोजीशन में।
vi. तेज चल : परेड अनुशासन को कायम रखते हुए एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए “परेड तीनों तीन में बाएँ से तेज चलेंगे तेज चल” कमांड दिया जाता है । तेज चल में कदम की लम्बाई 30 इंच की होती है। इस कमांड के मिलने पर बाएँ पैर तथा दायें हाथ को पहले आगे लाया जाता है और चलना शुरू करते हैं ।
vii. थम: यह कमांड उस समय मिलता है जब बायाँ पैर जमीन पर हो या दाहिना पैर बाएँ पैर को क्रॉस कर रहा हो तो दाहिने पैर को 30 इंच पूरा आगे रखेंगे । फिर बाएँ पैर को 12 इंच उपर उठा कर दाहिने पैर के साथ दबाएँ और दाहिने पैर को तेजी से 12 इंच उठाते हुए बाएँ पैर के साथ सावधान पोजीशन में लगाएँ।
viii. विसर्जन : यह कमांड मिलने पर परेड एक लाइन बनाकर विसर्जित हो जाती है और अलग-अलग दिशाओं में बिखर जाती है ।

b) सर्वधर्म प्रार्थना (All Faith Prayer):

सर्वधर्म प्रार्थना के समय सम्पूर्ण शांति होती है । लीडर कुछ महत्वपूर्ण निर्देश देते हैं। सर्वधर्म प्रार्थना का क्रम निम्न प्रकार से है :
 प्रातः स्मरण
 सरस्वती वंदना
 गुरु वंदना
 राम धुन
 जय बोलो
 विभिन्न धर्मों की प्रार्थना
 हर देश में तू
 We Shall Overcome
 शांति पाठ

प्रातः स्मरणप्रात: स्मरामि हृदि संस्फुरदात्मतत्त्वं
सच्चित्सुखं परमहंसगतिं तुरीयम् ।
यत्स्वप्नजागरसुषुप्तिमवैति नित्यं
तद्ब्रह्म निष्कलमहं न च भूतसंघ:।।1।।

प्रातर्भजामि मनसा वचसामगम्यं
वाचो विभान्ति निखिला यदनुग्रहेण।
यन्नेतिनेतिवचनैर्निगमा अवोचं-
स्तं देवदेवमजमच्युतमाहुरग्रय्म् ।।2।।

प्रातर्नमामि तमस:परमर्कवर्णं
पूर्णं सनातनपदं पुरुषोत्तमाख्यम् ।
यस्मिन्निदं जगदशेषमशेषमूर्तौ
रज्ज्वां भुजंगम इव प्रतिभासितं वै।।3।।
सरस्वती वंदनाया कुन्देन्दुतुषारहारधवला
या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सामां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
गुरु वंदनागुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु
गुरुर्देवो महेश्वर :
गुरु साक्षात् परं ब्रह्म
तस्मै श्री गुरवे नम : ।
राम धुनरघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
सीताराम सीताराम,
भज मन प्यारे सीताराम
रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,
सब को सन्मति दे भगवान
रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
जय रघुनंदन जय सिया राम
जानकी वल्लभ सीताराम
रघुपति राघव राजाराम
पतित पावन सीताराम
रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
सीताराम सीताराम,
भज मन प्यारे सीताराम
रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम
जय बोलोजय बोलो सब धर्मों की
जय बोलो सत कर्मों की
जय बोलो मानवता की
जय बोलो सब जनता की
जय बोलो……..

पिछड़ी कोई ना जाति हो
सबसे सबकी प्रीति हो
देश धर्म से नीति हो
हम सत के ही साथी हों
जय बोलो….
हम सब कष्ट उठाएंगे
सब मिलकर सुख पाएंगे
सब मिल प्रभु गुण गाएंगे
सत का जस फैलाएँगे |
जय बोलो….
विभिन्न धर्मों की प्रार्थना:विभिन्न धर्मों की प्रार्थना Alphabetic order
में बिना रुकावट के की जाती हैं।
प्रत्येक धर्म का एक व्यक्ति यह प्रार्थना करेगा
लेकिन प्रार्थना 3 मिनट से अधिक नहीं होनी चाहिए
और बाकी सब शांति से अनुसरण करेंगे
या बैठे रहेंगे।
हर देश में तूहर देश में तू हर भेष में तू,
तेरे नाम अनेक तू एक ही है,
तेरी रंगभूमि यह विश्व भरा,
सब खेल में मेल में तू ही तो है।।
सागर से उठा बादल बनके,
बादल से फटा जल हो करके,
फिर नहर बना नदियाँ गहरी,
तेरे भिन्न प्रकार तू एक ही है।।
चींटी से भी अणु-परमाणु बना,
सब जीव-जगत् का रूप लिया,
कहीं पर्वत-वृक्ष विशाल बना,
सौंदर्य तेरा तू एक ही है।।
We Shall OvercomeWe shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome, some day.
Oh, deep in my heart,
I do believe
We shall overcome, some day.
We’ll walk hand in hand,
We’ll walk hand in hand,
We’ll walk hand in hand, some day.
Oh, deep in my heart,
We shall live in peace,
We shall live in peace,
We shall live in peace, some day.
Oh, deep in my heart,
We shall all be free,
We shall all be free,
We shall all be free, some day.
Oh, deep in my heart,
We are not afraid,
We are not afraid,
We are not afraid, TODAY
Oh, deep in my heart,
We shall overcome,
We shall overcome,
We shall overcome, some day.
Oh, deep in my heart,
I do believe
We shall overcome, some day.
शांति पाठसर्वेऽपि सुखिन: सन्तु, सर्वेसन्तु निरामया: ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

12. संवाद (Communication):

a) कम्प्युटर : यह एक इलेक्ट्रॉनिक्स मशीन है जो गणितीय व तार्किक ऑपरेशन करता है । इसमें प्रोग्राम्स होते हैं जो कम्प्युटर को निर्देशित करते हैं।
b) कम्प्युटर, मोबाइल तथा इंटरनेट के फायदे व नुकसान:

फायदेनुकसान
बैंकिंग मेंकम्प्युटर हमें आलसी बनाता है ।
शॉपिंग मॉल मेंज्यादा देर कम्प्युटर पर काम करने से स्वास्थ्य संबंधी
समस्याएँ होती हैं जैसे आँखों की समस्या, पीठ दर्द, सिर दर्द
आटोमोबाइल डिज़ाइन मेंशारीरिक वृद्धि पर रोक लग जाती है ।
चिकित्सा मेंअवसाद की समस्या ।
ऑनलाइन खरीददारीव्यक्ति में असामाजिक व्यवहार की प्रवृति उत्पन्न होती है ।
सैटेलाइट को कंट्रोल करने मेंसाइबर अपराध बढ़ते हैं ।
ऑनलाइन टिकिट बुक करने मेंबेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है ।
एटीएम मशीन मेंअवांछित व अश्लील सामग्री की उपलब्धता

c) भारत स्काउट्स व गाइड्स की वेबसाइट को access करना :

भारत स्काउट्स व गाइड्स की वेबसाइट को एक्सैस करने के लिए सबसे पहले कम्प्युटर या मोबाइल में इंटरनेट होना चाहिए। भारत स्काउट्स व गाइड्स की आधिकारिक वेबसाइट निम्नलिखित है :
www.bsgindia.org

13. देशभक्ति (Patriotism):

भारत की सांस्कृतिक विरासत :

हमारे देश के बहु-सांस्‍कृतिक भण्‍डार और विश्‍वविख्‍यात विरासत के सतत् अनुस्‍मारक के रूप में भारतीय इतिहास के तीन हजार से अधिक वर्ष की जानकारी और अनेक सभ्‍यताओं के विषय में यहां बताया गया है। यहां के निवासी और उनकी जीवन शैलियां, उनके नृत्‍य और संगीत शैलियां, कला और हस्‍तकला जैसे अन्‍य अनेक तत्‍व भारतीय संस्‍कृति और विरासत के विभिन्‍न वर्ण प्रस्‍तुत किए गए हैं, जो देश की राष्‍ट्रीयता का सच्‍चा चित्र प्रस्‍तुत करते हैं। इस खण्‍ड में उन सभी तत्‍वों को शामिल किया गया है जो भारत की संस्‍कृति और विरासत के प्रतीक हैं।

भारत के विशेष स्मारक :
i. ताजमहल: संगमरमर में तराशी गई एक कविता। आकर्षण और भव्‍यता, अनुपम, ताजमहल पूरी दुनिया में अपनी प्रकार का एक ही है। एक महान शासक का अपनी प्रिय रानी के प्रति प्रेम का यह अद्भुत शाहकार है। बादशाह शाहजहां के सपनों को साकार करता यह स्‍मारक 1631 ए. डी. में निर्मित दुनिया के आश्‍चर्यों में से एक है। इसे बनाने में 22 वर्ष का समय लगा। इस अद्भुत मकबरे को पूरा करने में यमुना के किनारे लगभग 20 हजार लोगों ने जुट कर काम किया। ताजमहल का सबसे मनमोहक और सुंदर दृश्‍य पूर्णिमा की रात को दिखाई देता है।





ii. बृहदेश्‍वर मंदिर – तंजौर : ब़ृहदेश्‍वर मंदिर चोल वास्‍तुकला का शानदार उदाहरण है, जिनका निर्माण महाराजा राजा राज (985-1012.ए.डी.) द्वारा कराया गया था। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्‍काशी द्वारा लिखे गए शिला लेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्‍यक्तित्‍व की अपार महानता को दर्शाते हैं।बृहदेश्‍वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक भवन है और यहां इन्‍होंने भगवान का नाम अपने बाद राज राजेश्‍वरम उडयार रखा है। यह मंदिर ग्रेनाइट से निर्मित है और अधिकांशत: पत्‍थर के बड़े खण्‍ड इसमें इस्‍तेमाल किए गए हैं, ये शिलाखण्‍ड आस पास उपलब्‍ध नहीं है इसलिए इन्‍हें किसी दूर के स्‍थान से लाया गया था। यह मंदिर एक फैले हुए अंदरुनी प्रकार में बनाया गया है जो 240.90 मीटर लम्‍बा ( पूर्व – पश्चिम) और 122 मीटर चौड़ा (उत्तर – दक्षिण) है और इसमें पूर्व दिशा में गोपुर के साथ अन्‍य तीन साधारण तोरण प्रवेश द्वार प्रत्‍येक पार्श्‍व पर और तीसरा पिछले सिरे पर है। प्रकार के चारों ओर परिवारालय के साथ दो मंजिला मालिका है।





iii. आगरे का किला: ताजमहल के उद्यानों के पास महत्‍वपूर्ण 16 वीं शताब्‍दी का मुगल स्‍मारक है, जिसे आगरे का लाल किला कहते हैं। यह शक्तिशाली किला लाल सैंड स्‍टोन से बना है और 2.5 किलोमीटर लम्‍बी दीवार से घिरा हुआ है, यह मुगल शासकों का शाही शहर कहा जाता है। इस किले की बाहरी मजबूत दीवारें अंदर एक स्‍वर्ग को छुपाए हुए हैं।





iv. गेटवे ऑफ इंडिया: गेटवे ऑफ इंडिया अब मुम्‍बई शहर का पर्यायवाची बन गया है। यह मुम्‍बई का सबसे अधिक प्रसिद्ध स्‍मारक है और यह शहर में पर्यटन की दृष्टि से आने वाले अधिकांश लोगों का आरंभिक बिन्‍दु है। गेटवे ऑफ इंडिया एक महान ऐतिहासिक स्‍मारक है, जिसे देश में ब्रिटिश राज के दौरान निर्मित कराया गया था।





v. महाबोधि मंदिर संकुल, बोध गया बिहार : बोध गया में स्थित महाबोधि मंदिर का संकुल भारत के पूर्वोत्तर भाग में बिहार राज्‍य का मध्‍य हिस्‍सा है। यह गंगा नदी के मैदानी भाग में मौजूद है। महाबोधि मंदिर बुद्ध भुगवान की ज्ञान प्राप्ति के स्‍थान पर स्थित है। बिहार महात्‍मा बुद्ध के जीवन से संबंधित चार पवित्र स्‍थानों से एक है और यह विशेष रूप से उनके ज्ञान बोध की प्राप्ति से जुड़ा हुआ है।




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